चुनाव का मौसम एक बार फिर से छाया है। यूँ तो चुनाव का समय एक अवधी पर तय किया गया है पर हमारे यहाँ ऐसा कुछ दिखता नहीं।वैसे निश्चितता किसी चीज़ की है कहाँ? सबसे अधिक अनिश्चितता तो जीवन की है।वैसे जिंदगी गई तो गई । मगर चुनाव ? ये तो लगता है कहीं जाता भी है तो शायद अपना दिल बहलाने जाता होगा।चाय पीने नहीं जा सकता।चुनाव में चाय – नाश्ता का क्या कमी रहता है?
चुनाव तो कभी गया ही नहीं।हमेशा अवतरित रहता है।केवल नाम बदलता है।कभी लोकसभा, कभी विधानसभा ।कभी गांव में कोई चुनाव तो कभी शहर मे कोई चुनाव।कभी स्कूल , कॉलेज , यूनिवर्सिटी कभी …खैर छोड़िए गिनाना मुश्किल हो जायेगा ।मतलब ये है कि चुनाव बाबा हमेशा सक्रिये रहते हैं ।
चुनाव कराने वाले से लेकर ,चुनाव में लड़ने वाले हर कोई व्यस्त हो जाता है । नेता लोग का तो ऐसा ही है , या तो चुनाव में दीखते हैं हाथ जोड़े वोट मांगते , या फिर संसद में एक दूसरे पर कीचड उछालते । वैसे कुछ अच्छा बोलते हैं, कूछ मनोरंजन भी करते हैं । 🤪
चुनाव के दरम्यान माहौल तो त्यौहार की तरह होता है । कुछ लोगों के मज़े हो जाते हैं । खाली बैठे लोगों को भी काम मिल जाता है । किसी की रैली मे शामिल हो गए । किसी की भाषण सुनने आ गये ।दस – पचास भीड़ भी ले आये । बदले में खाने पीने की मौज़ , पैसों की बरसात । क्षमा चाहुंगा बात कडवी मगर सच है । बड़े – बड़े वादे किये जाते हैं । पर पूरे नहीं किये जाते हैं । निर्वाचन आयोग के दावे भी खोखले साबित होते हैं । किसी पे ज़ोर तो किसी पर मेहरबान । यह सर्वथा अनुचित है । पर इसे कौन ठीक करेगा । कोशिशे तो बहुत होती है पर परिणाम ? क्या हर चीज़ में सर्वोच्च अदालत को ही आना होगा ? जैसा की आज हो रहा है । फिर बाकी का क्या ? वो किस लिए ? अगर किसी को इंसाफ मिल रहा है तो आज अदालत ही है । सबकी निगाह उस पर ही टिकी होती है । अन्यथा .. खैर ।
चुनाव में रोजगार ,राजनीति मे व्यापर सब चरम पर होता है । जो जीता वो सिकंदर साथी उनके मस्त कलंदर । बाकि लोग बुरे हो जाते है क्यूँकि उन्होंने उनको वोट नहीं दिया । मीडिया तो व्यस्त रहती ही हैं । फिर इस निर्णायक पल में उनकी उपस्थिति तो होंगी ही । परिणाम आये उससे पहले ही किसी को हरा देते हैं, किसी को जीता देते है । ज़रा भी शिकन नहीं आता कि अभी क्या कहा अब क्या कह रहे हैं । कुछ इसी तरह कि , पाला बदलने की देर है बुरा से बुरा भी भला हो जाता है । सब दाग मिट जाते हैं ।
चुनाव के बाद हम बदलाव की उम्मीद रखते है । पर हऱ बार निराशा ही हाथ लगती है । पर एक बात ज़रूर है । जो जीता है उसे जिताने वाला भी हम में ही से तो हैं । तो क्या उनकी आशा पूर्ण हो गई , वो खुशहाल हो गये तो अच्छी बात है । अगर वो भी ठगा महसुस करते हैं तो ? ऐसे में तो एक ही उपाय रह जाता है । वोट दें, पर किसी लालच मे नहीं । किसी के प्रभाव में नहीं, पूर्वाग्रह पर नहीं । अपनी सोच , अपना विवेक इस्तेमाल करें । मन् की सुने , मन की खिड़की खोले । ये तभी होगा जब शिक्षा का प्रसार होंगा । लोग शिक्षित होंगे ।
एक कोशिश अपनी तरफ से हास्य के माध्यम से तो कुछ मन की बात करके । हमारा अभिप्राय मात्र और मात्र जागरूक करना है, किसी को आहत करना नहीं । वैसे हर इंसान के अन्दर भावनाये होती है ।कुछ अच्छे कुछ बुरे ,कुछ सही कुछ गलत । हमें बस उस ओर जाना है जो सबका भला करता है । अपने स्वार्थ के लिए ऐसा कुछ ना करें जिससे किसी और को पीड़ा पहुंचे , तकलीफ हो । जनहित की बात करें निजहित की नहीं । 💕♥️🌹🙏