दर्द होता है । कौन कहता है कि मर्द को दर्द नहीं होता है । ये अलग बात है कि जो दर्द औरत को होता है, मर्द उसको महसूस भी नहीं कर सकता है । एक दर्द वो जो एक औरत बच्चे को जन्म देते समय सहती है । एक दर्द वो जो एक सुहागन अपने सुहाग को खोकर महसूस करती है ,एक दर्द वो जो एक माँ अपना अंश ,अपना बेटा खोकर सहती है । कोई बयान कर सकता है क्या ? एक को अपना सर्वस्व दे अकेली रह गयी , और एक दूसरा तो उसके ही शरीर का हिस्सा था । किसका दुःख अधिक होगा , किसकी पीड़ा ज़्यादा कष्टकारी होगा , कोई कह सकता है क्या ?
पिछले दिनों कोई त्योहार ,त्योहार नहीं लगा । दर्द से सने चेहरे पर खुशी चमकती है क्या? किसी का भाई जैसा दोस्त बिछड़ गया , किसीका अपना सा करीबी चला गया । रतन टाटा जैसे देश के रत्न हमें रुला गये ।
कुछ ख़वर बन जाते है तो हमें पता चलता है । कुछ खुदपे गुज़रती है तो पता चलता है । ऐसे कई होंगे जिनके पर्व – त्योहार आँसुओ से धुंधले हो गये होंगे ।
दर्द देकर जाने वाला चला जाता है । जो रह गया , उसे निरंतर चलना होगा । उसके चलने पे ही उनकी दुनियाँ चलेगी । उनका परिवार चलेगा । उन्हें हँसना होगा , झिलमिलाते आंसुओ की पीछे से ही सही , मुस्कुराना होगा ।
मुस्कुराते चेहरे अक्सर पहचाने नहीं जाते , ग़म छुपाने की कोशिश में, चेहरे बनते – बिगड़ते रहते हैँ ।
कुछ कहने के लिए भी मन चाहिए होता है । हिम्मत चाहिये होता है । कलम उठाना सहज भी नहीं होता । मन अशांत है । समय लगेगा । कहते हैं कि समय सब ठीक कर देता है । पर क्या सही में सब ठीक हो जाता है ।